उच्च कोटि की तन्त्र साधनों एवं सिद्धि में भैरव सिद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है I समस्त असंभव कार्यों को संभव करने के लिए, भाग्य की रेख को मेख में बदलने के लिए भैरवों की साधना की जाती है I कलियुग में भी इनकी साधना करना संभव है, इसी युग मे भी अनेको सिद्ध महात्मा, अघोरी आदि हुए हैं I जिन्होंने भैरव सिद्धि के द्वारा अपने अनुयायियों को प्रकृति से परे जाकर चमत्कार दिखाए हैं I
वैसे तो तन्त्र शास्त्र में काल भैरव, रूद्र भैरव, महाभैरव, संहार भैरव, रुरु भैरव आदि बावन भैरव हैं और उनमें से आठ महा भैरव कहे गए हैं I प्रत्येक भैरव अपार शक्ति से सम्पन्न प्रसन्न होने पर भक्तों के कार्यों को स्वयं से सम्पन्न करने वाला प्रलय की अग्नि समान तेज से युक्त है I यहाँ पर उग्र भैरव की साधना एवं सिद्धि की संक्षिप्त विधि दी जा रही है I
विनियोग : ॐ अस्य उग्र भैरव मंत्रस्य अघोर ऋषि:, विराट छंद: भैरवो देवता भं बीजं, फट शक्ति:, सर्वार्थ सिद्धेय जपे विनियोग: I
II ध्यानम् II
कालाम्बुज श्यामल मानतास्यम्
कराल भव्याहतमप्रमेयम् I
लोला लकम लोक विनाश हेतुम
लुन्ठद्रिपुं नौमि धृतअट्टहासम् I
साधना विधि : उग्र भैरव जी की यन्त्र सहित पूजा करके साधक लाल आसन पर रात्रि समय किसी तीर्थ में या शमशान में बैठकर 14 दिनों में 125000 मंत्रों का जाप करें I इससे उग्र भैरव प्रारंभ में तो साधक को भय दिखलाकर साधना से विचलित करने की कोशिश करते हैं किन्तु दृढ़ता बनी रहने पर प्रसन्न होकर अपनी सिद्धि प्रदान कर देते हैं और एक बार मन्त्र सिद्ध होने पर साधक अनेकों कार्य कर सकता है I और इस प्रकार से सिद्ध मन्त्र को जितने मन्त्र में अक्षर हैं उतने सवा लाख जाप करने पर स्वयं भैरव सिद्ध हो जाते हैं और वह साधक भी स्वयं भैरव रूप हो जाता है I
वस्तुत: यह एक वीर एवं अघोर साधना है और इसकी सिद्धि से पूर्व अनेक मंत्रों एवं क्षुद्र देवों की साधना करनी पड़ती है क्योंकि इस साधना में चूक हो जाने पर भैरव साधक को या तो मार देते हैं या पागल कर देते हैं I
इस प्रकार की साधना से पूर्व संस्था के तन्त्रगुरु से संपर्क कर लें I