क्यों बनवाएं जन्मकुंडली ?
जन्मकुंडलियां भाग्य और भविष्य का मूलभूत आधार होती हैं, जैसे मजबूत नींव में ही अच्छे, सुन्दर भवन का भाग्य और अस्तित्व होता है, अच्छे एक्सरे, टैस्ट रिपोर्टों के आधार पर ही कुशल डाक्टर आपका ईलाज कर सकता है ऐसे ही आपकी जन्मकुंडली के ठीक, उत्तम गणनाओं से युक्त, विस्तृत विवेचनाओं से परिपूर्ण, ज्योतिषी की जरुरत के सभी आंकड़ों से युक्त होने पर ही आपकी समस्याओं का समाधान संभव है, एक अच्छी जन्मकुंडली ही आपके भविष्य के झरोखे में झांक सकती है, ठीक वैसे ही जैसे अच्छे टेलिस्कोप से ही आकाश मंडल का विवेचन संभव है, प्राय: आजकल सभी कम्प्यूटर वाले अशुद्ध एवं आधी अधूरी कुंडलियां जोकि अप्रमाणिक साफ्टवेयर्स से बनी होती हैं, उनको सस्ते मूल्यों में बनाकर दे देते हैं, जिससे परेशानियाँ घटने की बजाए बढ़ जाती हैं, अतः आवश्यकता होती है की आपके पूरे भविष्य का आंकलन करने वाली कुंडली सटीक रूप से और परिपूर्ण रूप से बनी हो, Astromyntra की इस श्रृंखला में आप दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साफ्टवेयर्स से विस्तृत विवेचनाओं, सटीक फलादेश, उत्तम वर्षफलों का, सूक्षतम गणनाओं से परिपूर्ण, अनेक भाषाओँ में उपलब्ध, दुनिया के सभी प्रमुख स्थानों की, पढने में सरल तथा सुंदर फाइल और उत्तम प्रस्तुतिकरण वाली कुंडलियां बनवा सकते हैं और इसे डाक द्वारा हार्डकापी के रूप में तथा इंटरनेट से साफ्टकापी के रूप में भी प्राप्त कर सकते हैं I ये कुंडलियां अनेक मूल्य चयनों (options) में उपलब्ध हैं, आप इन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बनवा सकते हैं I
महान लोगों की कुण्डली में होता है ..... पंच महापुरुष योग
हमारे देश में भविष्य जानने के लिए प्राय: जन्म कुण्डली को ही प्रामाणिक माना जाता है I यही कारण है कि हमारे यहां अधिकांशत: लोग जन्म कुण्डली के आधार पर ही अपना भविष्य जानना चाहते हैं और इसी में वे अधिक विश्वास रखते हैं I हालांकि पश्चिमी देशों में भविष्य जानने कि अनेकों विधियां प्रचलित हैं और हमारे यहां पर भी अब विभिन्न आयामों का उपयोग किया जाता है परन्तु जन्म कुण्डली को ही सर्वाधिक महत्व दिया जाता है I यह तो सर्वविदित है कि भविष्य जानने हेतु प्रामाणिक तथा सशक्त मध्यम है - जन्मकुंडली I सफल भविष्य कथन हेतु आवश्यक है- जन्मकुंडली में निहित योगों का अध्ययन करना I योग का साधारण अर्थ होता है- जोड़ना अथवा मिलाना परन्तु यहां योगों से हमारा तात्पर्य- कुण्डली में बनने वाले ग्रह योगों से है I कुण्डली में निर्मित हो रहे योगों को अनदेखा करने से फलादेश में पूर्णता नहीं आ पाती, वे सटीक नहीं हो पाते I क्योंकि बहुधा देखा गया है कि साधारण सी दिखने वाली कुण्डली का जातक सुखी, सम्पन्न तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन कर रहा होता है, जबकि असाधारण दृष्टिगोचर होने वाली कुण्डली का जातक विपन्नावस्था में जीवन- यापन करने को विवश होता है I आखिर इसकी वजह क्या है ? दरअसल इसकी वजह होती है, कुण्डली में पाए जाने वाले-विशेष योग I इन विशेष योगों में कुछ योग ऐसे होते हैं, जो जन्म कुण्डली में निहित शुभ योगों का शुभ प्रभाव नष्ट कर देते हैं, जबकि कुछ योग अशुभ योगों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की क्षमता रखते हैं I जन्म कुण्डली में लगभग 300 योगों का उल्लेख मिलता है I आपकी कुण्डली में भी बहुत से महत्वपूर्ण योग हो सकते हैं, आपको इनकी जानकारी होनी चाहिए I ज्योतिष शस्त्र के अनुसार जब मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह जातक की कुण्डली में अपनी स्वराशि में या उच्चस्थ होकर केन्द्र भाव में स्थित होँ, तो एक विशेष महायोग बनता है जो पंचमहापुरुष योग के नाम से जाना जाता है I यह योग विशेष होने से अति शुभ फलदायी माना गया है I हमारे देश के बहुत से महान लोगों की कुण्डलियों में पंच महापुरुष योग था I इस योग का प्रभाव ही था कि वे लोग दुनियां में सफलता के शिखर को छू पाए ....! पंचमहापुरुष योग में जो पांच योग बताये गए हैं I मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र शनि इनमें से कोई ग्रह स्वराशि या उच्च राशि का होकर केन्द्र में हो तो क्रमश: यह पांचों योग बनते हैं I यदि चन्द्र लग्न से केन्द्र में भी उपर्युक्त पांचों ग्रहों में कोई स्वराशि या उच्च राशि का होकर चन्द्र केन्द्र में हो तो साम्राज्य और सिद्धि प्रदान करने वाला होता है I कहने का तात्पर्य है कि जैसे जन्म लग्न से केन्द्र का विचार करना वैसे ही चन्द्र लग्न से भी विचार करना चाहिए I यदि कोई एक ग्रह उपर्युक्त प्रकार से योग करक हो तो मनुष्य भाग्यवान होता है I यदि दो ग्रह योग बनाएं तो राजा के समान होता है I तीन ग्रह योग बनाएं तो राजा होता है, चार ग्रह योग बनाएं तो महाराजा होता है और जिसकी कुण्डली में रुचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश ये पांचों योग होँ वह इससे भी उच्च पदवी प्राप्त करता है I ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह जातक की कुण्डली में अपनी स्वराशी या उच्चस्थ होकर केन्द्र भाव में स्थित होँ, तो एक विशेष महायोग बनता है जो पंचमहापुरुष योग के नाम से जाना जाता है I यह योग विशेष होने से अति शुभ फलदायी माना जाता है इमंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रहों से बनने वाले पंचमहापुरुष योग क्रमश: रुचक, भद्र, हंस, मालव्य और शश योग नाम से जाने जाते हैं I
रुचक योग
जब जातक की जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह यदि केन्द्र भावों में वृष, वृश्चिक या मकर राशि में स्थित होँ तो रुचक योग बनता है I जब कुण्डली में मंगल शुभ भावों अर्थात केन्द्र या त्रिकोण का स्वामी होकर यह योग बनाएं तो विशेष शुभ और प्रभावशाली होता है I इस योग की प्रभावशीलता और भी बढ़ जाती है I जब मंगल केन्द्र स्थानों में अपनी उच्च राशि मकर में हो, साथ ही शनि भी कुण्डली में बलवान स्थिति में हो या फिर मंगल किसी ऐसे ग्रह के नक्षत्र में हो, जिसका स्वामी नीच राशि में हो, तो जातक को जातक को इस योग का शुभ फल अल्प मात्रा में ही मिल पाता है I
परिभाषा: यदि मंगल अपनी ही राशि में हो या उच्च का हो और केन्द्र भाव में स्थित हो तो रुचक योग बनता है I
फल: रुचक योग में उत्पन्न व्यक्ति का शरीर मजबूत एवं गठा हुआ होता है I ऐसा जातक प्रसिद्ध और प्राचीन ग्रंथों का ज्ञाता होगा I ऐसे जातक का सौभाग्य सदैव साथ देता है और जातक परम्परा और परिपाटी के अनुसार राजा या राजा के समकक्ष होता है I उसका शरीर सख्त, आकर्षक, धनी, दीर्घजीवी और सेना का अग्रगण्य होगा I जन्म कुण्डली में मंगल 7वें भाव में है जो एक केन्द्र स्थान है I सूर्य और एकादशेश योगकारक शनि और नवमधिपति बुध के साथ युक्त होने के कारण मंगल बली है परन्तु यह अति अशुभ है I अतः रुचक योग पूर्णत: बली है परन्तु चूंकि मंगल पर अन्य बुरे प्रभाव हैं, अतः इस योग में विनाश का भी तत्व है I रुचक योग के कारण ऐसे योग वाला जातक, साहसी, आक्रामक, अभिमानी और एक महान नेता, शासक और आधुनिक युग का तानाशाह भी बन सकता है I यद्यपि ऐसे जातक का साधारण परिस्थिति में जन्म हुआ होता हो परन्तु वह अति शक्तिशाली देश का शासक बन सकता है और उसकी वीरता, पराक्रम और नीडरता के आगे हर कोई सर झुका देता है और उसकी शरण में आ जाता है I इतिहास गवाह है की जिन- जिन व्यक्तियों की कुण्डली में यह योग पाया गया है वे लोग बहुत ही महान हुए हैं और उन्होनें बहुत नाम कमाया है साथ ही अपना सम्पूर्ण जीवन सुख- शांति और वैभव के साथ व्यतीत किया है I हालांकि ऐसे लोगों को जीवन में संघर्ष भी बहुत करना पड़ता है परन्तु वे कभी हर नहीं मानते और सदा विजयी रहते हैं I स्वामी विवेकानंद जी की कुण्डली में भी यही योग था I
भद्र योग
यह योग जातक की कुण्डली में बुध के मिथुन या कन्या राशि में केन्द्र भावों में स्थित होने से बनता है I जब बुध के साथ उसके मित्र ग्रह भी स्थित होँ, तो यह अति उत्तम होता है I बुध जिस नक्षत्र में स्थित हो, उसके स्वामी की स्थिति भी कुण्डली में बलवान हो, तो यह शुभ फल प्रदान करने वाला होता है I भद्र योग में जन्मा जातक शक्तिशाली, अल्पभाषी, दीर्घजीवी और परिवार को चाहने वाला होता है I
परिभाषा: यदि बुध अपनी ही राशि या उच्च राशि में हो और केन्द्र में स्थित हो तो भद्र योग होता है I
फल: भद्र योग में उत्पन्न व्यक्ति बहुत शक्तिशाली होता है, शेर के जैसा चेहरा और छाती पूर्ण रूप से विकसित, बहुत चौड़ी होती है, आनुपातिक अंग होगा, ऐसा जातक कम बोलने वाला होगा I ऐसे जातक अपने परिवार व सम्बन्धियों को लेकर बहुत ही जज्बाती होते हैं, सदा उनकी मदद करने का प्रयास करते हैं I ऐसे जातक स्वस्थ, निरोगी एवं लम्बी आयु के साथ जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं I इनको समाज में पूर्ण सम्मान प्राप्त होता है I जन्म कुण्डली में बुध अपनी ही राशि में 10वें भाव में स्थित है I बुध पर कोई बुरे प्रभाव नहीं है I इस व्यक्ति की शारीरिक विशेषताएं लग्न की विशेषताओं के अनुसार है जबकि बौधिक विकास, विद्वत्ता, धन और उदारता के मामले में भद्र योग का पूरा प्रभाव है I भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की कुण्डली में भी यही योग था I
हंस योग
जब जातक की जन्म कुण्डली के केन्द्र भावों में गुरु, धनु, मीन या कर्क राशि में स्थित हो, तो हंस महायोग बनता है I जब गुरु केन्द्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ युति या दृष्टि संबंध बनाएं, तो यह श्रेष्ठ फलदायी होता है I गुरु के साथ कारक और उसके मित्र ग्रह के स्थित होने, गुरु का उच्च राशि कर्म में स्थित होना और चन्द्रमा का कुण्डली में शुभ स्थिति में होना भी हंस योग की शुभता प्रदान करते है I हंसयोग में जन्मा जातक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला, न्यायप्रिय, कर्तव्यनिष्ठ, नैतिक, सदाचारी और सभी व्यक्तियों का प्रिय होता है I वह सुंदर और तेजस्वी होता है I
परिभाषा: यदि बृहस्पति अपनी राशि में या उच्च का हो और केन्द्र में स्थित हो तो हंस योग बनता है I
फल: उसके पैरों पर शंख, कमल, मछली और अंकुश का चिन्ह होगा I उसका शरीर सुंदर होगा, वह सबका प्रिय होगा, वह न्यायी तथा स्वच्छ मस्तिष्क वाला होगा I लग्न में तुला राशि है और बृहस्पति दशम भाव में केन्द्र में उच्च का है I स्वभावत: दशम भाव के संबंध में यह योग बनता है I इस जन्मकुंडली में हंस योग के अतिरिक्त मालव्य योग और शशक योग भी विद्यमान है क्योंकि शुक्र और शनि भी लग्न से केन्द्र भाव में स्वक्षेत्र का और उच्च स्थान में है I इसमें आश्चर्य नहीं कि यह कुण्डली एक महान राजा कि है I शशक योग के कारण जातक दूसरों के धन का लोभी बन गया I परिणाम स्वरुप वह एक महान साम्राज्य का प्रधान बना I राजा विक्रमादित्य कि कुण्डली में इस योग को देखा जा सकता है I
मालव्य योग
यह योग जातक कि जन्म कुण्डली में शुक्र ग्रह के वृष, तुला अथवा मीन राशि में केन्द्रस्थ होने से बनता है I इस योग में शुक्र के योगकारक ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध हो, शुक्र अपनी उच्च राशि मीन के केन्द्र भाव में स्थित हो और गुरु कुण्डली में बलिष्ठ हो, शुक्र जिस नक्षत्र में स्थित हो, उसका स्वामी कुण्डली में बलिष्ठ हो, तो इन सभी दशाओं में मालव्य योग के शुभ परिणाम मिलते हैं I शुक्र जिस नक्षत्र में होँ, उसका स्वामी यदि नीच राशि में स्थित हो तो इस योग के शुभ फलों में न्यूनता आ जाती है I इस योग में जन्मा जातक धनी और प्रसन्नचित होता है I
परिभाषा: यदि शुक्र अपनी ही राशि में हो या उच्च का हो और केन्द्र में स्थित हो तो मालव्य योग होता है I
फल: जातक का शरीर पूर्ण विकसित होगा, वह दृढ़ मस्तिष्क वाला होगा, धनी और बच्चों तथा पत्नी के साथ प्रसन्न रहेगा I उसके पास गाड़ियां होंगी, स्पष्ट विचार वाला, प्रसिद्ध और विद्वान होगा I इस जन्म कुण्डली में शुक्र दशम भाव में उच्च का है जो केन्द्र भाव है I इसलिए इस कुण्डली में मालव्य योग बना है I श्री जवाहर लाल नेहरु कि कुण्डली में यह योग था I
शश योग
जब जातक की जन्म कुण्डली में शनि केन्द्र भावों में मकर, कुंभ अथवा तुला राशि में स्थित हो, तो यह योग बनता है I शनि उच्च राशि तुला में स्थित हो और शुक्र की स्थिति बलवान हो, शनि के योगकारक ग्रहों के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध हो और शनि जिस नक्षत्र में हो, उसका स्वामी यदि नीच राशि अथवा अकारक और पाप ग्रहों के प्रभाव में हो, तो यह योग अपने शुभ फल प्रदान करने में न्यूनता लाता है I इस प्रकार जन्म कुण्डली में पंचमहापुरुष योग जातक के लिए उसकी ग्रह स्थिति के अनुसार श्रेष्ठ और सामान्य फल प्रदान करने वाला योग है I
परिभाषा: यदि शनि अपनी ही राशि में हो या उच्च राशि में हो और केन्द्र भाव में स्थित हो तो शशक योग बनता है I
फल: इस योग में उत्पन्न व्यक्ति के पास अनेक नौकर होंगे I उसके आचरण पर सन्देह किया जा सकता है I वह गांव या नगर का प्रधान होगा या राजा भी हो सकता है I उसे दूसरे के धन की लालसा होगी और स्वभाव से दुष्ट होगा I इस जन्म कुण्डली में शनि चन्द्रमा से केन्द्र भाव चौथे स्थान में उच्च का है I चन्द्रमा बुरे प्रभाव से मुक्त नहीं है I परन्तु बृहस्पति के उच्च का होने के कारण चन्द्रमा की स्थिति काफी मजबूत हो गयी है जिसके परिणामस्वरुप जातक में अपवित्र विचार नहीं आये I शशक योग बली है क्योंकि यह योग चौथे भाव में बन रहा है I जो भूमि, मकान आदि का भाव है I इससे जातक राजा के समकक्ष होगा और उसकी आय लाखों में होगी I शनि के कारण जातक एक बहुत बड़ा उद्योगपति बन गया I इस प्रकार आप उपरोक्त विवरण से समझ सकते हैं कि जातक की कुण्डली में यदि पंचमहापुरुष योगों में से कोई एक योग भी हो तो जातक बहुत ही सौभाग्यशाली होता है I उसको अपने जीवन में कभी धन, यश, सम्मान की कमी नहीं रहती I उसका सम्पूर्ण जीवन सुखमय व्यतीत होता है I यदि जातक की कुण्डली में इन पांचों योगों में से दो या तीन योग एक साथ बनते होँ तब तो कहना ही क्या I इतिहास में ऐसे बहुत से महान और धनवान व्यक्ति हुए हैं जिनकी कुण्डली में उपरोक्त योग थे I आप भी अपनी कुण्डली को ध्यान से देखिये, क्या आपकी कुण्डली में पंचमहापुरुष योग हैं I