जब सभी ग्रह राहु और केतु की धुरी के एक ओर होँ तथा दूसरी ओर कोई भी ग्रह न हो, तो कालसर्प योग स्थापित होता है I नेपच्यून, प्लूटो, युरेनस, जिन्हें हिन्दी में यम, इन्द्र और वरुण की संज्ञा दी गई है, उनकी स्थिति से कालसर्प योग के निर्मित होने या न होने से कोई अंतर नहीं पड़ता I चाहे यह तीनों ग्रह या इनमें से कोई भी, राहु केतु की धुरी के एक ओर हो अथवा दूसरी ओर हो I
मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं परन्तु इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो 12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ I यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं I इन सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है I मूलरूप से कालसर्प योगों के बारह प्रकार हैं जो विश्वविख्यात सर्पों के नाम पर आधारित हैं I
अनन्त कालसर्प योग |
तक्षक कालसर्प योग |
कुलिक कालसर्प योग |
कर्कोटक कालसर्प योग |
वासुकि कालसर्प योग |
शंखचूड कालसर्प योग |
शंखनाद कालसर्प योग |
घातक कालसर्प योग |
पद्म कालसर्प योग |
विषाक्त कालसर्प योग |
महापद्म कालसर्प योग |
शेषनाग कालसर्प योग |